जल

उपयोग किए जाने लायक करीब एक तिहाई पानी के व्यर्थ जाने पर चिंता जताते हुए संसद की एक स्थायी समिति ने बाँधों के निर्माण के संदर्भ में राष्ट्रीय पर्यावरण नीति पर दोबारा विचार किए जाने की सिफारिश की है।

जल संसाधन पर संसद की स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय ने पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की बड़ी परियोजनाओं के लिए पर्यावरण संबंधी मंजूरी के प्रावधानों में संशोधन का सुझाव दिया है। बहरहाल राष्ट्रीय पर्यावरण नीति 2006 में इन सुझावों को शामिल नहीं किया गया है।

समिति की रिपोर्ट लोकसभा में पेश की गई। इसमें कहा गया है कि जलसंग्रह क्षमता बढ़ाने के लिए मंत्रालय के सुझाव पर पर्यावरण की दृष्टि से दोबारा विचार करना जरूरी है क्योंकि एक तिहाई उपयोगी पानी समुद्र में व्यर्थ चला जाता है।

रिपोर्ट के अनुसार जल संसाधन मंत्रालय राष्ट्रीय पर्यावरण नीति में संशोधन के लिए इस पर पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के साथ मिलकर विचार कर सकता है। इसमें यह भी कहा गया है कि 11वीं पंचवर्षीय योजना में 60 करोड़ हेक्टेयर की सिंचाई क्षमता हासिल करने के लिए 97 750 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है।

वर्तमान संग्रह क्षमता 71.70 बिलियन क्यूबिक मीटर (बीसीएम) है। 11वीं पंचवर्षीय योजना में निर्माणाधीन परियोजनाओं से 30.57 बीसीएम की संग्रह क्षमता हासिल करने का प्रस्ताव है। विचाराधीन परियोजनाओं से 71.34 बीसीएम अतिरिक्त क्षमता हासिल की जा सकती है।

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