पर्यावरण मामलों की सुनवाई

भारत राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण व्यवस्था शुरू कर दुनिया में ऐसा तीसरा देश बन गया है, जहाँ पर्यावरण मामलों की सुनवाई के लिए विशेष अदालतें चलती हैं।

उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश लोकेश्वरसिंह पंता को न्यायाधिकरण का पहला अध्यक्ष बनाया गया है और उन्होंने पदभार संभाल लिया है। इस न्यायाधिकरण की चार क्षेत्रीय पीठ होंगी।

न्यायाधिकरण के अस्तित्व में आने के साथ राष्ट्रीय पर्यावरण अपीली प्राधिकार अस्तित्व में नहीं रह जाएगा तथा उसके समक्ष के सारे मामले नए संस्था को स्थानांतरित कर दिया गया है।

इस न्यायाधिकरण की स्थापना राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण कानून के तहत किया गया है जिस कानून को इस वर्ष के आरंभ में संसद के द्वारा पारित किया गया था।

इस न्यायाधिकरण में पर्यावरण के विभिन्न क्षेत्रों और संबंधित विज्ञान क्षेत्रों के विशेषज्ञ भी शामिल होंगे। इस न्यायाधिकरण को पर्यावरण के मसलों की अनदेखी किए जाने पर संबंधित पक्षों को मुआवजा दिलाने और किए गए नुकसान के लिए पुनर्स्थापना करने के लिए निर्देश जारी करने के लिए अधिकृत किया गया है।

पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने बताया कि यह अपने प्रकार की अलग संस्था है, जिसमें ‘प्रदूषण करने वाले नुकसान की भरपाई करें तथा ठोस विकास’ के सिद्धांत को अपनाया गया है। उन्होंने कहा कि कोई भी व्यक्ति नागरिक क्षतिपूर्ति का दावा करने के लिए न्यायाधिकरण को संपर्क कर सकता है जो पर्यावरण कानूनों को अपर्याप्त तरीके से लागू करने के कारण उत्पन्न होता है।

भारत से पहले ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड ही केवल दो देश हैं, जिनके पास पर्यावरण संबंधी मसलों के निपटारे के लिए विशेष अदालत है। पिछले वर्ष अप्रैल में उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के पद से अवकाश ग्रहण करने वाले पंता ने कहा कि उन्हें जो जिम्मेदारी सौंपी गई है, उसे पूरा करने की कोशिश करने का उनका प्रयास होगा।

इस न्यायाधिकरण में 20 सदस्य होंगे जिसमें 10 न्यायापालिका क्षेत्र के और 10 सदस्य पर्यावरण के विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ होंगे। (भाषा)

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