भारत में प्रदूषण

भारत में प्रदूषण
वायु प्रदूषण
शहरीकरण और औद्योगिकीकरण से भारत की वायु गुणता में अत्यधिक कमी आयी है। विश्वभर में 30 लाख मौतें, घर और बाहर के वायु प्रदूषण से प्रतिवर्ष होती हैं, इनमें से सबसे ज्यादा भारत में होती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत की राजधानी दिल्ली, विश्व के 10 सबसे अधिक प्रदूषित शहरों में से एक है। सर्वेक्षण बताते हैं कि वायु प्रदूषण से देश में, प्रतिवर्ष होने वाली मौतों के औसत से, दिल्ली में 12 प्रतिषत अधिक मृत्यु होती है।
एक अलग अध्ययन के अनुसार, भारत का सकल घरेलू उत्पाद पिछले दो दषकों में 2.5 प्रतिषत बढ़ा है, वाहनों से होने वाला प्रदूषण 8 प्रतिषत बढ़ा है जबकि उद्योगों से बढ़ने वाला प्रदूषण चौगुना हो गया है। भारत के प्रदूषणों में वायु प्रदूषण सबसे अधिक गम्भीर समस्या है। यह कई रूपों में हो रहा है जैसे- वाहनों से निकलने वाला धुऑं, उद्योगों से अषोधित औद्योगिक धुऑं, औद्योगिकीकरण के अतिरिक्त बढ़ते शहरीकरण से नये-नये औद्योगिक केन्द्र खुल गये हैं पर उनके लिए आवश्यक नागरिक सुविधाओं तथा प्रदूषण नियंत्रण के तरीकों का विस्तार नहीं हुआ है।

वायु प्रदूषण नियंत्रण के लिए आवश्यक प्रावधानों को दिल्ली जैसे शहर में पूर्णरूपेण लागू कर पाना काफी मुश्किल कार्य है। फिर भी इस दिशा में कार्य जारी है। विशेष रूप से सी.एन.जी. गैस के प्रयोग ने, इस दिशा में उल्लेखनीय कार्य किया है पर भविष्य में वाहनों की संख्या के लगातार बढ़ने की सम्भावना से, जुड़े हुए सरकारी प्रयासों की तथा प्रदूषण नियंत्रण प्रावधानों को कठोरता से लागू करने की आवश्यकता है।
पानी का प्रदूषण तथा बर्बादी
पानी के प्रदूषण के कई स्रोत हैं। सबसे अधिक प्रदूषण शहरों की नालियों तथा उद्योगों के कचरे का, नदियों में प्रवाह से फैलता है। वर्तमान में इसमें से केवल 16 प्रतिषत को ही शोधित किया जाता है और यही नदियों का जल अन्तत: हमारे घरों में पीने के लिए भेज दिया जाता है। जो कि अत्यधिक दूषित तथा बीमारी उत्पन्न करने वाले जीवाणुओं से भरा होता है। कृषि मैदानों से निकलने वाले कूड़े-कचरे को भी, नदियों में डाल दिया जाता है इसमें खतरनाक रसायन तथा कीटनाषक, पानी में पहुँच जाते हैं।
पिछले पचास वर्षों में उद्योगों का निरन्तर विस्तार हुआ है। कुछ उद्योगों में जल प्रदूषण, जैविक प्रदूषक तथा जहरीले कचरे के रूप में अधिक सघन है। खाद्य उत्पाद तथा औद्योगिक रसायन बनाने वाले, उद्योगों में यह ज्यादा पाया जाता है। वास्तविकता यह है कि ''गंगा क्रिया योजना'' के अन्तर्गत पड़ने वाले अधिक से अधिक उद्योगों के जल शोधित यंत्र नहीं लगे हैं। बड़े उद्योगों ने तो अपने औद्योगिक कचरे के निस्तारण के उपाय किये हैं पर छोटे तथा मध्यम दर्जे के उद्यागों ने इन पर होने वाले व्यय को देखते हुए, इसे नहीं अपनाया है। उनका लाभ की स्थिति में न होना या बहुत कम लाभ होना भी, इसमें बाधक है।

रासायनिक प्रदूषण
तेजी से विकसित हो रहे औद्योगिक देशों जैसे भारत में, स्थानीय जनता को प्रदूषण से होने वाले खतरों को अनदेखा कर दिया जाता है। भोपाल की गैस-त्रासदी इसका एक उदाहरण है।
रासायनिक प्रदूषण को पूरे देश में तेजी से अनुभव किया जा रहा है। यह पाया गया है कि गैर औद्योगिक क्षेत्रों की तुलना में, औद्योगिक क्षेत्रों में तरह-तरह के कैन्सर, विभिन्न त्वचा की बीमारियाँ, जन्मजात विकृतियों, आनुवांशिक असामनता भी लगतार बढ़ रही है, स्वाभाविक साँस लेने की, पाचन की, रक्त बहाव की, संक्रामक आदि बीमारियों में चौगुना बढ़ोत्तरी हुयी है।
भारत सकरार की 'नेशनल जियाफिजिकल रिसर्च लैबोरेटरी' के सर्वेक्षण के अनुसार, 1970 के दशक के साथ ही औद्योगिकीकरण ने भारत के शान्त मैदानों, झीलों, झरनों का परिदृश्य बदल दिया है जहरीले भारी रासायनिक तत्वों से धरती के अन्दर का जल, निरन्तर प्रभावित हो रहा है।

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